लखनऊ। 10 अप्रैल, 2023
एक महिला को अपनी गर्भावस्था में जहाँ गुणवत्ता पूर्ण सेवाओं की आवश्यकता होती हैं, वहीं सम्मानजनक और सकारात्मक व्यवहार उसका अधिकार है। लेकिन वर्तमान में परिस्थिति इसके विपरीत है अक्सर देखा गया है कि, महिलाओं को गर्भावस्था एवं प्रसव के दौरान या प्रसव पश्चात् मातृत्व देखभाल सेवाओं में अनुचित व्यवहार का सामना करना पड़ता है। जिसमें उनके साथ भेदभाव, गलत तरीके से बात, निजता का हनन आदि शामिल है। जो कि महिलाओं के लिए एक बुरा अनुभव बनकर रह जाता है।
क्वीन मैरी अस्पताल के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की हेड डॉ. एस पी जैसवार बताती हैं कि सम्मानजनक व्यवहार के लिए जरुरी है कि वन टू वन प्रणाली को अपनाया जाये। ऐसी सुविधा होनी चाहिए कि गर्भवती जब भी केंद्र पर आये तो उसके साथ एक स्वास्थ्यकर्मी या उसकी परिचित महिला पूरे समय रह सके। लेकिन अत्यधिक भीड़ और अत्यधिक कार्य भार होने के चक्कर में यह संभव नहीं होता है। हालाँकि गर्भवती को प्रसव के समय एक महिला साथी या पति को साथ में ले जाने का प्रावधान है। ृऐसे में हमारा पूरा ध्यान होता है कि महिला को सुविधा मिल सके। हम लोग फुल मैटरनिटी केयर यानि हर एक गर्भवती महिला को सम्मानजनक देखभाल दी जाये, इसपर जोर दे रहे हैं। इसके लिए प्रशिक्षण सत्र भी समय समय पर चलाये जाते हैं। लेकिन यह सिर्फ़ डॉक्टर तक की बात नहीं है, जिसमें सभी स्टाफ़ की भागीदारी होती है। अगर सभी लोग सम्मानजनक व्यवहार के कांसेप्ट को समझ ले तो इसको प्रैक्टिस में लाना आसान हो जायेगा।’’
ज्ञात हो कि मातृत्व स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं। जैसे हर माह की 9 और 24 तारीख़ को क्रमशः प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान दिवस और क्लिनिक दिवस मनाया जाता है जिसमें गर्भवतियों की सम्पूर्ण जाँचकर, उच्च जोखि़म वाली गर्भावस्था को चिन्हित किया जाता है, और गर्भवतियों को उचित सलाह दी जाती है। प्रसव पूर्व जाँच के माध्यम से ही प्रसव सम्बन्धी जटिलताओं का पता लगाकर उनका समय पर निस्तारण किया जा सकता है। इन्हीं प्रयासों का परिणाम हैं कि प्रदेश गत वर्षों में मातृ मृत्यु को कम करने में सफ़ल हुआ है।
गर्भवती को सम्मान और गरिमा के साथ उचित देखभाल देना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सुरक्षित मातृत्व आश्वाशन (सुमन) कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में से एक है।
बर्थ कम्पेनियन हो सकते हैं बड़ी मदद
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2002 में बर्थ कम्पेनियन को मातृ एवं शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए बहुत जरूरी माना था। इसके बाद दुनिया भर में यह पाया गया कि बर्थ कम्पेनियन की मौजूदगी गर्भवती महिला के प्रसव के समय या पश्चात उनके स्वास्थ्य में सकारात्मक मदद करती हैं, जिससे उनके हार्मोन्स सुचारु रूप से चलते हैं। इस प्रयोग से देखा गया हैं कि प्रसव का समय कम हो जाता हैं और नॉर्मल प्रसव करने की ज्यादा संभावनाएं रहती हैं। इसी के साथ यदि प्रसूताओं के साथ उचित व्यवहार किया जाएगा तो एक तनाव मुक्त वातावरण के साथ ही वह अपना अगला प्रसव संस्थान में ही कराएंगी। इसी को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने वर्ष 2018 में प्रसव के समय किसी महिला सहयोगी या पति (यदि कक्ष की निजता बरक़रार रहे) को साथ में रहना अनिवार्य कर दिया।
इसी संदर्भ मे इंटरनेशनल जनरल ऑफ़ हेल्थ एंड साइंस रिसर्च में 2022 में प्रकाशित एक शोध ृ प्रेवलेंस ऑफ़ डिसरेस्पेक्ट एंड एब्यूज एंड इट्स डीटरमिनंट्स डियुरिंग एंटीनेटल केयर सर्विसेज इन रूरल उत्तर प्रदेश’’ के अनुसार ग्रामीण उत्तरप्रदेश में लगभग 60 प्रतिशत महिलाओं ने प्रसव पूर्व जाँच (एएनसी) के दौरान अपमान और अनुचित व्यवहार का सामना किया। लगभग 18 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि स्वास्थ्य प्रदाताओं का व्यवहार उनके प्रति सभ्य नहीं था। इसके अलावा, 1.5 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि एएनसी सेवायें लेते समय उनके साथ अपमानजनक भाषा का उपयोग हुआ। इस अनुचित व्यवहार के प्रतिफल में कुछ गर्भवतियों ने अपनी चारों एएनसी पूरी नहीं की।