अंबेडकरनगर। 24 अक्तूबर, 2021
नौशाद खां अशरफी/अभिषेक शर्मा राहुल
करवा चौथ एक ऐसा पवित्र दिन है, जब पति की आयु और विजय की कामना एवं प्रार्थना भगवान स्वीकार करते हैं। मान्यताओं और पौराणिक सन्दर्भ के अनुसार इस व्रत का आरंभ देवता और दैत्यों के महासंग्राम के समय हुआ था। महासंग्राम में जब देवता लगातार परास्त हो रहे थे, तब ब्राह्म जी की सलाह पर देव पत्नियो ने अपने पतियों की जीत के लिए कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को उपवास रख कर सच्चे मन से प्रार्थना की थी। इस कारण चंद्रोदय से पहले ही देवताओं को विजय प्राप्त हुई। तभी से करवा चौथ व्रत प्रचलन में आया। करवा चौथ व्रत के पीछे पति यानी सौभाग्य से संबंधित अलग-अलग कथाए प्रचलित हैं, लेकिन सबका निष्कर्ष पति पत्नी के सुखमय जीवन और दीर्घायु से संबंधित है। सावित्री सत्यवान की कथा ,करवा नामक पतिव्रता स्त्री की कथा ,द्रौपदी की कथा ,गणेश और वीरमती नामक स्त्री की कथा सार्वधिक प्रचलित है।
करवा चौथ के दिन स्त्रियां मन में बस एक ही इच्छा ,एक ही संकल्प रखती हैं कि उनके पति का कल्याण हो। निर्जला व्रत और पूजन के प्रभाव से जो भी इच्छा की जाती है, वह पूरी होती है। चंद्रमा मन का स्वामी है, चन्द्रमा पूजन से पति-पत्नी के बीच समर्पण तथा सच्चे प्रेम की उत्पत्ति होती है, मन की चंचलता समाप्त होती है और माता पार्वती एवं शिव सहित चन्द्रमा का आशीर्वाद सौभाग्य में वृद्धि करता है। शुभ मुहुर्त में चंद्र दर्शन चंद को अर्घ्य देकर पति का चेहरा देखने से आपसी विश्वास और स्नेह बढ़ता है।