राज्य मुख्यालय/लखनऊ। 09 अक्तूबर, 2022
मानसिक स्वास्थ्य आज वैश्विक समस्या का रूप धारण कर चुका है। इसमें सबसे अधिक दिक्कत यह सामने आ रही है कि मानसिक अस्वस्थता से जूझ रहे 85 प्रतिशत लोग इलाज को आगे ही नहीं आते हैं। उन्हें तो यह तक पता नहीं होता है कि वह मानसिक अस्वस्थता के दौर से गुजर रहे हैं । इनमें से खासकर वह लोग आगे नहीं आते हैं जो मादक पदार्थों के सेवन से जुड़े विकारों से ग्रसित हैं। इस बात की पुष्टि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे-2015-16 की उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट में होती है।
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार हर 16 में से एक व्यक्ति किसी न किसी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारी से जूझ रहा है या यूँ कहें कि हर चार-पांच घर में एक व्यक्ति मानसिक बीमारी से पीड़ित है। मादक पदार्थों के सेवन से होने वाले मानसिक विकारों के आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं। इसमें छह व्यक्तियों में से एक व्यक्ति इन विकारों से जूझ रहा है। इस सर्वेक्षण में यह अनुमान लगाया गया कि 18 वर्ष की उम्र से ऊपर के करीब 15 मिलियन लोग यूपी में किसी न किसी मानसिक रोग से जूझ रहे हैं। अगर इस आंकड़े में तम्बाकू के सेवन से होने वाले मानसिक विकारों को जोड़ दिया जाये तो यह संख्या बढ़कर 21 मिलियन पहुँच जाती है। इन सभी बीमारियों में से सबसे ज्यादा समस्या अवसाद व ऐंज़ाइयटी की बनी हुई है ।
मानसिक समस्याओं के बोझ का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2019 में कोविड महामारी से पहले विश्व में आठ में से एक व्यक्ति मानसिक विकारों से ग्रसित है। कोविड के ठीक एक साल बाद इस संख्या में 25ः का इजाफा हुआ है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि स्थिति बेहद गंभीर है।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के मानसिक स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल प्रोफ़ेसर डॉ. आदर्श त्रिपाठी का कहना है कि ऐसा देखने में आता है कि लोग शुरूआती दौर में यह मानने को ही नहीं तैयार होते कि उन्हें कोई मानसिक दिक्कत है। साल-दो साल में जब समस्या बढ़ जाती है तो वह चिकित्सक के पास पहुँचते हैं। इस अंतराल को दूर करना बहुत जरूरी है क्योंकि शुरूआती दौर में समस्या का निदान ज्यादा आसान होता है। जानकारी का अभाव, शर्म, हिचक, डर और सामाजिक बहिष्कार जैसी सोच के साथ ही ऐसे मरीजों में घर-परिवार द्वारा देखभाल में कमी होना इसके प्रमुख कारण हैं।
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक़ – सर्वेक्षण के दौरान ग्रुप डिस्कशन, साक्षात्कार व अन्य प्रमुख स्रोतों के माध्यम से उपचार के लिए आगे न आने के प्रमुख कारण सामने आये। जिसमें पता चलता है कि मानसिक बीमारी से जूझ रहे लगभग 70-80ः लोग इसे पारंपरिक तरीकों से ठीक करने की कोशिश करते हैं। वह मजार व अन्य धार्मिक स्थलों पर तांत्रिक व बाबा की मदद लेते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह सही जानकारी न होना, समाज का डर, शर्म, पैसे की कमी और साथ ही योग्य चिकित्सकों के न मिलने की वजह से मानसिक बीमारी को लेकर लोगों की गलत धारणाएं जैसे बुरी आत्माओं का प्रभाव जैसी बातों की वजह से लोग इसके इलाज को प्राथमिकता नहीं देते।
इसी को देखते हुए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत श्दुआ से दवा तक’ कार्यक्रम चल रहा है। इसके अंतर्गत मंदिर, मजार व झाड़-फूंक वाले स्थानों पर जाकर मानसिक रोगियों को खोजकर उनका इलाज किया जाता है। जरूरत के अनुसार उन्हें जिला अस्पताल स्थित मनकक्ष में इलाज के लिए बुलाया जाता है।
इलाज की सुविधा बढ़ाने के साथ ही दिक्कत महसूस होने पर इलाज के लिए लोगों को आगे लाने के प्रति जागरूकता के लिए ही हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। विश्व की बड़ी समस्या के रूप में इसे देखते हुए ही इस साल इस दिवस की थीम- ‘मानसिक स्वास्थ्य को सभी के कल्याण के लिए वैश्विक स्तर पर प्राथमिकता दें’ (मेक मेंटल हेल्थ एंड वेल बीइंग फॉर आल ए ग्लोबल प्रायरिटी) तय की गयी है।