अंबेडकरनगर। 20 जनवरी, 2024
जिले के बसखारी ब्लाक के डोड़ों गांव निवासी इंकलाबी शायर और भाजपा से जुड़े साहित्य मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुमैल अहमद के द्वारा देश की राष्ट्रीय एकता, अखंडता और गंगा जमुनी तहजीब पर लिखे गए अशआर ( पंक्तियों ) की खूब सराहना हो रही है। खास बात यह है कि शायर कुमैल अहमद उर्दू में नात, मनकबत, कसीदे से लेकर हम्द तक लिखने में उन्हें महारत हासिल है। वहीं दूसरी ओर हिन्दी में वे कविता भी बखूबी लिखते चले आ रहे हैं।
पेश है इंकलाबी शायर कुमैल अहमद के तरफ से लिखे गए चंद अशआर :-
कोई हिंदू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है,
हिंद की ख़ाक़ से निकली हुई परछाई है
हम वतन हैं जो मेरे उनको हो आदाब मेरा,
झगड़े होने से मेरे भाई तो रुसवाई है
कोई छोटा न बड़ा सब है खुदा के बंदे,
तक़वा वाले को खुदा बक्शेगा सच्चाई है
शेर तेरे किसी भी दिल पे अगर दस्तक दें,
तो समझ लेना तेरे शेर में गहराई है
ज़लज़ले चाहे तो हस्ती को मिटा डालें कुमैल,
उसकी रहमत से ही बन्दो ने अमां पाई है
ख्वाब में मेंरे आका की बस दीद करा दे या मौला,
इसी बहाने कमजोरों की ईद करा दे या मौला
हिंद की धरती से आवाज लगाने वाले बन्दों को,
आका ऐ नेअमत से इनकी तमहीद करा दे या मौला
चेहरों पर कुछ गर्द लपेटे हाजी पहुंचे हैं तैयबा,
अपने करम से चेहरों को खुर्शीद बना दे या मौला
तेरे हुक्म से आए हैं और तेरे करम के तालिब हैं,
सरवरे आलम से हक में ताईद करा दे या मौला
कब्र की मंजिल पहले होगी आक़ाऐ नेअमत आएंगे
तू चाहे तो अहमद से एक नअत पढ़ा दे या मौला,,