लखनऊ। 9 फरवरी 2023
फाइलेरिया उन्मूलन के तहत जनपद में शुक्रवार को 10 फरवरी से आईडीए (आइवरमेक्टिन, डाईइथाइल कार्बामजीन और एल्बेंडाजाल) अभियान शुरू हो रहा है। इस अभियान के तहत जिले की 51,14,982 आबादी को फाइलेरिया से बचाव की दवा खिलाई जाएगी। यह जानकारी जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. ऋतु श्रीवास्तव ने दी।
अभियान शुरू होने के एक दिन पूर्व डॉ. ऋतु ने मीडिया को बताया कि अभियान की सफलता के लिए कई पहल की गई हैं। इसमें पहली बार पांच मेडिकल कॉलेजों में बूथ लग रहे हैं। इसमें केजीमयू, लोकबंधु, कैरियर, इन्टीग्राल और एरा मेडिकल कॉलेज शामिल हैं। वहीं इस बार शहरी क्षेत्र में खासकर अपार्टमेंट्स और मलिन बस्ती में रहने वाले लोगों को फाइलेरिया से बचाव की दवा खिलाने का लक्ष्य निर्धारित है। अभियान के दौरान 8184 ड्रग एडमिनिस्ट्रेटर, 683 सुपरवाइजर और 4092 टीम घर-घर जाकर दवा खिलाएंगी। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य केंद्रों के अलावा विभिन्न स्थानों पर दवा सेवन के लिए बूथ भी लगेंगे।
उन्होंने स्पष्ट किया कि दवा स्वास्थ्य कार्यकर्ता के सामने ही खानी है और दवा खाली पेट नहीं खानी है। आइवरमेक्टिन ऊंचाई के अनुसार खिलाई जाएगी जबकि एल्बेंडाजोल को चबाकर ही खानी है। फाइलेरिया की दवा दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती व अत्यधिक बीमार लोगों को नहीं खानी है। शेष सभी लोग साल में एक बार और लगातार 2 वर्ष तक दवा खाकर भविष्य की परेशानियों से मुक्ति पा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि दवा खाने से बचने के लिए बहाने बिल्कुल भी न करें, जैसे – अभी पान खाए हैं, अभी सर्दी-खांसी है, बाद में खा लेंगे आदि। आज का यही बहाना आपको जीवनभर के लिए मुसीबत में डाल सकता है। दवा खाने के बाद जी मिचलाना, चक्कर या उल्टी आए तो घबराएं नहीं। ऐसा शरीर में फाइलेरिया के परजीवी होने से हो सकता है, जो दवा खाने के बाद मरते हैं। ऐसी प्रतिक्रिया कुछ देर में स्वतः ठीक हो जाती है। यह बीमारी इस मामले ज्यादा खतरनाक है कि इसके लक्षण ही 10-15 वर्ष बाद दिखते हैं और जब दिखते हैं तब इसका कोई खास उपचार नहीं बचता है। वहीं शुरू में संक्रमित व्यक्ति बिना किसी लक्षण के दूसरे स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमित करता रहता है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि अन्य देश इस बीमारी को भले ही उपेक्षित बीमारी की श्रेणी में रख रहे हैं लेकिन भारत में वर्ष 2027 तक प्राथमिकता से समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित है। उन्होंने बताया कि यह अभियान केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और नेशनल सेंटर फॉर वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल की पहल पर शुरू किया गया है।