अंबेडकरनगर। 22 मई, 2024
नौशाद खां अशरफी/अभिषेक शर्मा राहुल
जिले की सिविल जज सीनियर डिविजन की अदालत ने सूफी संत हजरत मखदूम अशरफ की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त किछौछा दरगाह के प्रबंधकीय व्यवस्थाओं के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। सज्जादानशीन व मुतवल्ली सै. मोहिउद्दीन अशरफ के तरफ से प्रतिवादी सै. खलीक अशरफ व अन्य के खिलाफ दाखिल मुकदमे में कोर्ट ने अपना फैसला दिया है।
मूल वाद संख्या 82/2019 में वादी मोहिउद्दीन अशरफ के तरफ से कोर्ट को यह बताया गया कि सज्जादगी बजरिए वसीयत व नामजदगी तकरीबन 8 पुश्तों से चला आ रहा है। सज्जादानशीन अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ ही दरगाह शरीफ का इंतेजाम व इंसेराम करते रहे हैं। 8 जून 1989 को पिता सै. जफरुद्दीन अशरफ के स्वर्गवास के बाद उनके चाचा सै. फखरुद्दीन अशरफ सज्जादानशीन हुए। बालिग होने के बाद वादी सै. मोहिउद्दीन अशरफ ने एक जनवरी 2006 को सज्जादानशीन का कार्यभार ग्रहण किया तब से वह अपनी जिम्मेदारी निभाते चले आ रहे हैं। दरगाह की संपत्ति व प्रबंधन पर उनका पूरा नियंत्रण है। अतः ऐसी दशा में पीरजा़दगान को इन मामलों में किसी भी तरह के दखल से रोका जाए।
प्रतिवादी सै. खलीक अशरफ ने तर्क दिया कि हजरत मखदूम साहब के जमाने से चली आ रही उनकी संपत्ति को वादी ने बेच दिया है और वह बेहद चालाक किस्म का व्यक्ति है। जिसके कारण उनके विरुद्ध मुकमदे तक दर्ज हुए। दरगाह की संपत्ति हरगिज तौर पर वक्फ नहीं है और यह फैसला अवध चीफ कोर्ट के तीनों फैसलों में विद्यमान है। मखदूम साहब के दरगाह पर एकत्र होने वाले समस्त स्त्रोतों से आमदनी की वसूली का रेकार्ड पीरजादगान को ही माना गया है।
कोर्ट ने मोहिउद्दीन अशरफ की ओर से प्रस्तुत आवेदन 7ग2 वास्ते अस्थायी निषेधाज्ञा निरस्त कर आपत्ति निस्तारित कर दिया। वाद के निस्तारण तक यह निर्देशित किया गया की प्रतिवादी पीरजादगान के माध्यम से चंदा व दान का प्रबंधन करे तथा दरगाह की साफ-सफाई व अन्य व्यवस्थाओ पर किए खर्च का लेखा जोखा रखें और मांगे जाने पर प्रस्तुत करें। अदालत ने ये भी स्पष्ट किया कि दरगाह मखदूम अशरफ की तमाम संपत्तियां वक्फ नही है। ये संपत्तियां मखदूम अशरफ के वंशजों की है।